मुकाम झूंठे हैं ,
या तलाश है अधूरी।
मंज़िल नाराज़ है ,
या हमारे ही बदले मिज़ाज़ हैं।
तख़्त हैं , ताज है ,
आंकड़ों का कारोबार है।
नकाबों की महफ़िलें ,
अंतहीन भयावर सराब है।
खोजूं कहाँ दरबदर ,
किस नए जूनून की तलाश है।
प्रश्नों के अम्बार में,
आता नहीं जवाब है।
तूफानों से जीत ,
कश्ती करे मल्लाह से यह सवाल है।
शांत लहरों से मुहब्बत , अब क्यों ?
इनका तो सुकून भी ,
बदमिजाज है।
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